भारतीय घोटाला वर्ष: 2010

!! शाहनवाज़ आलम !!

वर्तमान में देश जिस दौर से गुजर रहा है वह समय किसी भी देश के लिए
ठीक नहीं कहा जा सकता है। एक ओर आम जनता महंगाई, भ्रष्टाचार, कुपोषण, नक्सलवाद साथ ही पानी, बिजली, चिकित्सा, सड़क जैसी आधारभूत समस्याओं से जूझ रहा है, वहीं कांग्रेस का हाथ आम जनता के साथ वाली केन्द्र सरकार का आमजनों से कोई सरोकार नहीं है। सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के मामलों से घिरी हुई हैं। आये दिन एक के बाद एक उजागर होते घोटालों ने देश की साख पर बट्टा लगा दिया है। देश में हर किसी के जुबान में घोटाला का ही जिक्र है। चाहे वह 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो, आदर्श सोसायटी घोटाला हो, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला हो, आईपीएल घोटाला हो या और कोई घोटाला। जनता घोटालों और समस्याओं से त्रस्त है। मगर इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पर रहा है। कांग्रेस और सहयोगी दलों के नेता भ्रष्टाचार के नदी में डूबे हुये है। मगर दिल्ली में आयोजित कांग्रेस के 83वें महाधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार का उल्लेख करते हुए कहा कि कांग्रेस हमेशा पारदर्शिता और शुचिता के पक्ष में रही है जबकि वास्तविकता यह है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में जितने घोटाले हुये है वो आजादी के बाद आज तक किसी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुए है। केवल वर्ष 2010 में इतने बड़े-बड़े घोटाले सामने आये है जिसे भूलना आसान नहीं होगा। इन बड़े घोटालों के भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखते हुए यदि वर्ष 2010 को घोटाला वर्ष कहा जाय तो कोई अतियुक्ति नहीं होगी।

वर्ष 2010 के कुछ बडे़ घोटाले हैं -

2जी स्पेक्ट्रम घोटाला - भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार ऐसी शर्मनाक घटना घटी कि संसद का पूरा शीतकालीन सत्र शोर-शराबे व हंगामें की भेंट चढ़ गया। कारण 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर विपक्ष द्वारा जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) की मांग और सŸाारूढ़ पार्टी द्वारा पीएसी जांच कराने की बात।नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के अनुसार पूर्व केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री ए। राजा ने अपने चहेतों को मनमाने ढंग से 2जी स्पेक्ट्रम बांटकर देश के सरकारी खजाने को 1।76 लाख करोड़ का चूना लगाया। कैग ने अपनी पड़ताल में मूल रूप से 3जी स्पेक्ट्रम के नीलामी के दौरान जिन दरों पर दूरसंचार कंपनियों को लाइसंेस दिये थे, उनको आधार मानते हुए सरकारी खजाने को 1।76 लाख करोड़ का घोटाले की बात कही थी। राजा के कारनामों के बारे में कैग की कुल 77 पृष्ठ की रिपोर्ट कहती है, संचार विभाग ने यूनिवर्सल ऐक्सेस सर्विसेस लाइसेंस सन् 2001 की कीमत 1,660 करोड़ रुपये में सन् 2008 में एक करोड़ और जोड़कर केवल 1661 करोड़ रुपये में 122 कंपनियों को जारी कर दिया। जबकि इनमें से 88 कंपनियों के पास जरूरी योग्याताएं भी नहीं थी। कैग की रिपोर्ट कहती है, ऐसा करते समय राजा ने अधीनस्थ अधिकारियों, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकार, वित्त मंत्रालय, कानून मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी सलाहों को पूरी तरह नजरअंदाज किया, इससे देश को 1.76 लाख करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। गौरतलब है कि नवंबर 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राजा को लिखे पत्र में लाइसेंस दिये जाने की मामले में नीलामी व्यवस्था को अमल में लाये जाने की सलाह दी थी। 1।76 लाख करोड़ में से 1,02,490 करोड़ का नुकसान 2008 में हुआ था। जब दूरसंचार मंत्री ए। राजा ने नियमों की अनदेखी करते हुए 122 नई दूरसंचार कंपनियों को 2001 की दरों पर 2जी स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस दिया था। जिस स्वान कंपनी को 1537 करोड़ रू में लाइसेंस मिला, उसने तुरंत ही अपने 45 प्रतिशत शेयर इटिसलर कंपनी को 4200 करोड़ रू में बेच दिये और यूनिटेक वायरलेस जिसने 1661 करोड़ में लाइसेंस खरीदा, उसने अपने 60 प्रतिशत अधिकार 6200 करोड़ रू में बेच दिये। एक तरफ केवल दो कंपनियों के आधे हिस्से को ही केवल 10 हजार करोड़ से अधिक कीमत प्राप्त हो रही है, वहीं दूसरी ओर सभी 09 लाइसेंस पाने वाली कंपनियों ने मिलकर दूरसंचार विभाग को केवल 10,722 करोड़ रू दिये।2008 में ही आरकाॅम और टाटा को 2001 की दर पर डुअल टेक लाइसेंस दिया गया, जिससे सरकार को 37,154 करोड़ का नुकसान हुआ। इसी वर्ष यानी 2008 में ही जीएसएम आॅपरेटरों को 6.2 मेगाहाट्र्ज से अधिक स्पेट्रम मुहैया करवाने के कारण सरकार को 36,993 करोड़ का घाटा हुआ।दरअसल, संचार मंत्रालय ने अपने ही बनाये नियमों और निर्देशिका का पालन नहीं किया, लाइसेंस आवेदन के लिए पहले आओ-पहले पाओ का नियम अपनाया और फिर बिना कोई सूचना दिए आवेदन की तारीख को सीमित कर दिया। और तो और आवेदन जमा करने के लिए सिर्फ 45 मिनट दिये। इन सब घटनाओं से यह बात तो स्पष्ब्ट है कि पर्दे के पीछे का घेल पैसो का था जिसके कारण यह सब हुआ। भले ही आरोपों से घिरने के बाद प्रधानमंत्री ने राजा से इस्तीफा ले लिया मगर राजा ने अपने इस्तीफा में साफ नहीं किया कि वह क्यों इस्तीफा दे रहे है ? 2जी स्पेक्ट्रम की स्टोरी में रतन टाटा और सुनील मिŸाल की भूमिका देश के काॅरपोरेट घरानों का सरकार पर हमेशा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव रहने के तथ्य को उजागर करता है। इससे यह साबित होता है कि कहने के लिए हमारा देश लोकतांत्रिक है, लेकिन सच्चाई में देश में काॅरपोरेट घरानों का राज चल रहा हैं, वे जो चाहते हेै, जैसा चाहते है अपने हिसाब से देश के नियम कानून को तोड़ मरोड़ कर अपना काम करवा लेते है।

काॅमनवेल्थ घोटाला - काॅमनवेल्थ गेम्स के सफल आयोजन और समापन के साथ ही इसने अपने साथ घोटालों की कथा छोड़ गया। आजाद भारत का सबसे बड़ा खेल समारोह नेताओं और अधिकारियों की भ्रष्टाचार की वजह से बड़े घोटालों में तब्दील हो गया। घोटा
लों का आलम यह था कि 1600 करोड़ का खेल बजट समापन तक 7000 करोड़ पहुंच गया। एक अनुमान के मुताबिक 25 करोड़ के सामान को 230 करोड़ में खरीदा गया। उदाहरण के तौर पर टेªड मिल को ही ले लीजिए, 45 दिनों के किराये के रूप मंे लिए एक टेªड मिल के लिए नौ लाख पचहŸार हजार रूपये चुकाये गये, जबकि बाजार में एक लाख से कम किराये पर आसानी से मिल रहे है। मतलब यह है कि एक टेªड मिल के लिए नौ गुना ज्यादा खर्च किया गया। हैरानी की बात यह है कि एक ट्रेड मिल की कीमत ही सिर्फ चार लाख रूपये है। यानी एक ट्रेड मिल के 45 दिनों के किराए से दो ट्रेड मिल खरीदे जा सकतते थे। साथ ही 30 रूपये वाले टीशू पेपर को काॅमनवेल्थ अधिकारियों ने 3757 रुपये में एक रोल खरीदा। छाता और कुर्सी को बाजार के कई गुना ज्यादा कीमत पर किराये पर लिए गया। वास्तविक कीमत और काॅमनवेल्थ अधिकारियों द्वारा किये गये कीमत या किराये में जमीन-आसमान को देखकर कोई भी आदमी लूट की कीमत को समझ सकता है। इस समय सीवीसी, सीबीआई , सीएजी, ईडी और इनकम टैक्स विभाग खेल के दौरान हुए घपलों के आरोपों की जांच कर रहा है। पूर्व सीएजी के नेतृत्व में विशेष जांच समिति इस माह अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। प्रधानमंत्री की ओर से नियुक्त की गई शुंगलू कमेटी ने दिल्ली सरकार की परियोजनाओं की जांच शुरू कर दी है। शानदान ढंग से गेम्स खत्म होने के बाद आयोजन समिति के प्रमुख के साथ कई उच्च अधिकारियों को नाम इस घोटाले में सामने आ रहे है ।

आदर्श सोसायटी घोटाला- अब कारगिल यु़द्ध में शहीद हुये लोगों के लिए बनाये गये आदर्श सोसायटी के साथ भी घोटाला जुड़ गया। जिसके कारण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। शहीदों के परिवार के लिए बनने वाली इमारत निर्माण खत्म होते-होते नेताओं, नौकरशाहों और सैन्य अफसरों की मिल्कियत बन गई । इसे बनाने में पर्यावरण और सुरक्षा नियमों को अनदेखा किया गया। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद 40 सदस्यीय आदर्श सोसायटी का गठन किया गया था, अब इसके 103 सदस्य है, जिसमें सिर्फ 03 सदस्यों का संबंध करगिल युद्ध से है। जिस समय आदर्श सोसायटी का आवंटन हुआ उस समय उसकी कीमत 60 लाख रूपये थी। आज इसकी बाजार कीमत आठ करोड़ के आस-पास है। इमारत के लाइन में ही ताज प्रेसिडेंट होटल है और पास में अंबानी बंधुओं का घर सी-विंड। नौसेना का मुख्यालय भी पास मेें हैै। सोसायटी निर्माण के समय से ही नौसेना ने आपŸिा जताई थी। इमारत की उचाई शुरूआत में 30 मीटर तय की गई थी जबकि इसका निर्माण कार्य खत्म होते-होते यह सौ मीटर हो गयी। सैन्य अफसरों और नेताओं ने इस में फलैट माने वालों ने अपनी आय को वास्तविक आय से कई गुना कम बताया तो कुछ ने अपने रोब का प्रयोग करके अपने रिश्तेदारों का अवंटन करवाया।

कर्नाटक जमीन घोटाला - चाहेे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की। सभी के दामन घोटालों से दागदार है यानी इस हमाम में सब नंगे है। कर्नाटक में भाजपा शासित सरकार ने राज्य में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़ दिये है। बतौर मुख्यमंत्री युदियुरप्पा ने पार्टी के लिए जमीन तैयार करने के बजाय जमीन के घोटाले को ज्यादा प्राथमिकता दी। यह खेल तीन कदमों में येदियुरप्पा ने खेला। पहले, औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर सस्ते में उद्योगपतियों को जमीन आवंटन कर दिया और दूसरे कदम में उसी जमीन को अपने रिश्तेदारों को खरीदवा दिया। आखिर में जमीन को संबंधित संस्था से नोटिफाई कर दिया गया। जिससे देखते-देखते लाखों की जमीन करोड़ों में बदल गई। पोल खुलने के बाद येदियुरप्पा के परिवार वालों ने जमीन लौटाना शुरू कर दिया। मगर येदियुरप्पा दावा करते है कि मैंने कुछ गलत नहीं किया।

घोटालों की फेहरिस्त यही समाप्त नहीं होती है। और भी घोटाले है। बहरहाल, टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और अन्य तमाम गलत तरीको से कमाये गये नेताओं, अधिकारियोें और भ्रष्टाचरियों के कारण आजादी से लेकर अब तक, अमेरिका में वाशिंगटन स्थित संस्था ग्लोबल फाईनेंशियल इंटिग्रिटी के अनुसार, 450 अरब डाॅलर का नुकसान हुआ है यानी लगभग 23 लाख करोड़। यदि यह धन देश के सकल घरेलू उत्पाद का हिस्सा होता तो यकीनन देश की बहुत सारी समस्याओं का निवारण हो चुका होता। मगर बढ़ते भ्रष्टाचार के मामले को देखकर लगता है सरकार को जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाना ही होगा। यदि जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी हुई तो देश में एक क्रांति की शुरूआत हो जाएगी।